प्र
. जनसंचार का अर्थ बताकर उसके तत्वों का वर्णन
कीजिए |
जनसंचार का अर्थ -
जनसंचार
का अर्थ संचार शब्द संस्कृत की ‘चर्’ धातु से निकला है, जिसका अर्थ चलना या संचरण करना है।
अंग्रेजी में इसके लिए कम्युनिकेशन शब्द चलता है संचार के साथ ‘जन’ शब्द जुड़ने से
‘जनसंचार’ शब्द बनता है। ‘जन’ का अर्थ भीड़, समूह तथा जन
समुदाय से है।
मनुष्य के सन्दर्भ
में ‘जन’ का
अर्थ हे बड़ी संख्या में एकत्र लोग। ‘‘यदि
‘जन’ शब्द
को संचार का विशेषण माने तो इसका अर्थ होगा -‘‘बड़ी
संख्या में लोगों को प्रभावित करना या सम्मिलित करना। अर्थात् जब संचार की प्रक्रिया या संदेशों के
आदान-प्रदान की प्रक्रिया बड़े पैमाने पर होती है तो वह जनसंचार कहलाता है। संचार के तत्व संचार के निम्नलिखित तत्व हैं –
1. संचार प्रक्रिया की शुरुआत स्रोत या संचारक से होती है। जब स्रोत
या संचारक एक उद्देश्य के साथ अपने किसी विचार, संदेश या भावना को किसी और तक पहुँचाना चाहता है तो संचार-प्रक्रिया की
शुरुआत होती है।
2. भाषा असल में,
एक तरह का कूट चिह्न या कोड है। आप
अपने संदेश को उस भाषा में कूटीकृत या एनकोडिंग करते हैं। यह संचार की प्रक्रिया
का दूसरा चरण है। सफल संचार के लिए यह ज़रूरी है कि दूसरा व्यक्ति भी उस भाषा यानी
कोड से परिचित हो जिसमें आप अपना संदेश भेज रहे हैं। इसके साथ ही संचारक का
एनकोडिंग की प्रक्रिया पर भी पूरा अधिकार होना चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि सफल
संचार के लिए संचारक का भाषा पर पूरा अधिकार होना चाहिए। साथ ही उसे अपने संदेश के
मुताबिक बोलना या लिखना भी आना चाहिए।
३. संचार-प्रक्रिया
में अगला चरण स्वयं संदेश का आता है। किसी भी संचारक का सबसे प्रमुख उददेश्य अपने
संदेश को उसी अर्थ के साथ प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना है। इसलिए सफल संचार के लिए
ज़रूरी है कि संचारक अपने संदेश को लेकर खुद पूरी तरह से स्पष्ट हो। संदेश जितना ही स्पष्ट और सीधा होगा, संदेश के
प्राप्तकर्ता को उसे समझना उतना ही आसान होगा।
4. संदेश को किसी माध्यम (चैनल) के ज़रिये प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना
होता है। जैसे हमारे बोले हुए शब्द ध्वनि तरंगों के ज़रिये प्राप्तकर्ता तक
पहुँचते हैं, जबकि दृश्य संदेश प्रकाश तरंगों के ज़रिये। इसी तरह वायु तरंगों के
ज़रिये भी संदेश पहुँचते हैं। टेलीफ़ोन, समाचारपत्र, रेडियो, टेलीविज़न, इंटरनेट और फ़िल्म
आदि विभिन्न माध्यमों के ज़रिये भी संदेश प्राप्तकर्ता तक पहुँचाया जाता है।
5. प्राप्तकर्ता यानी रिसीवर प्राप्त संदेश का कटवाचन यानी उसकी डीकोडिंग
करता है। डीकोडिंग का अर्थ है प्राप्त संदेश में निहित अर्थ को समझने की कोशिश। यह
एक तरह से एनकोडिंग की उलटी प्रक्रिया है। इसमें संदेश का प्राप्तकर्ता उन चिहनों
और संकेतों के अर्थ निकालता है। जाहिर है कि संचारक और प्राप्तकर्ता दोनों का उस
कोड से परिचित होना ज़रूरी है।
संचार-प्रक्रिया में प्राप्तकर्ता की भी अहम भूमिका होती है, क्योंकि वही संदेश
का आखिरी लक्ष्य होता है। प्राप्तकर्ता कोई भी हो सकता है। वह कोई एक व्यक्ति हो
सकता है, एक समूह हो सकता है, या कोई संस्था अथवा एक विशाल जनसमूह
भी हो सकता है। प्राप्तकर्ता को जब संदेश मिलता है तो वह उसके मुताबिक अपनी
प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। वह प्रतिक्रिया सकारात्मक या नकारात्मक हो सकती है।
संचार-प्रक्रिया में प्राप्तकर्ता की इस प्रतिक्रिया को फ़ीडबैक कहते हैं।
संचार-प्रक्रिया की सफलता में फ़ीडबैक
की अहम भूमिका होती है। फ़ीडबैक से ही पता चलता है कि संचार-प्रक्रिया में कहीं
कोई बाधा तो नहीं आ रही है। इसके अलावा फ़ीडबैक से यह भी पता चलता है कि संचारक ने
जिस अर्थ के साथ संदेश भेजा था वह उसी अर्थ में प्राप्तकर्ता को मिला है या नहीं? इसी फ़ीडबैक के अनुसार
ही संचारक अपने संदेश में सुधार करता है और इस तरह संचार की प्रक्रिया आगे बढ़ती
है।
प्र.
समाचार पत्र का विकास बताकर उसकी उपयोगिता लिखिए -
समाचार पत्र का विकास :-
सबसे पहला समाचार
पत्र वाइसराय हिक्की द्वारा बंगाल गज़ट नाम से बंगाल में शुरू किया गया था. हालाँकि
इसके पहले भी कई पन्नेनुमा पत्रों का उपयोग सूचनाओ के आदान प्रदान के लिए किया
जाता था. परंतु बंगाल गज़ट ही सबसे पहला पूर्ण रुपेन अखबार है, क्युकी पहले अखबार अग्रेज़ी
भाषा मे होते थे, तो यह जनसमान्य के लिए उपयोगी नहीं थे,
यह केवल अंग्रेज़ो के उपयोग का साधन मात्र थे. सबसे पहला हिन्दी
समाचार पत्र सन 1826 मे “उदंम मार्तड” नाम से प्रकाशित हुआ. यह
एक साप्ताहिक अखबार था, परंतु इसे 1827 में ही दबाव के चलते बंद करना पडा. इसके बाद अंग्रेज़ो के विरूध्द संघर्ष
करते हुये बंगालदूत, समाचार सुधा वर्षण, केसरी, वंदे मातरम आदि समाचार पत्रों का संपादन किया
गया.
आज के समय में
समाचार पत्र केवल सुचनाओ को प्रदान करने का साधन मात्र नहीं रह गया है, अपितु
इसमें हर वर्ग के लोगों को मान्यता प्रदान की गयी है. इसमें देश विदेश की खबरों के
साथ साथ खेल, मनोरंजन, पढ़ाई, चटपटी हर तरह की ख़बरे होती है. हँसी मजाक, साहित्य
धर्म आदि से जुड़े लेख भी मौजूद है. सरकार पर आलोचनात्मक लेख हो या बड़े बिज़नस का
पर्दा फ़ाश सब कुछ हर समाचार पत्र में निडरता से प्रकाशित किया जाता है . बॉलीवुड
हॉलीवुड की खबरों को भी विशेष मान्यता दी जाती है, कई समाचार
पत्रो में इसके लिए एक पेज ही अलग होता है. आजकल युवाओ के लिए हर समाचार पत्र में
अलग से जॉब पोर्टल होता है, जिसमें वे जॉब वेकेंसी के बारे
मे जानकारी प्राप्त कर सकते है.
कई के माध्यम से युवाओ को अपने कैरियर को लेकर मार्गदर्शन दिया
जाता है. बच्चों की रुचि का ध्यान भी समाचार पत्रों द्वारा रखा जाता है, उनके
लिए समाचार पत्रों में अलग से काँलम होता है. कुछ समाचार पत्रों द्वारा अलग
से पुस्तिकाओ का प्रकाशन किया जाता है, जिसमें बच्चों
के लिए अलग-अलग एक्टिविटी होती है. कई समाचार पत्रों द्वारा तो बच्चो के लिए
उपलब्ध इन पुस्तिकाओ के माध्यम से बहुत बड़े स्तर पर प्रतियोगिताओ का आयोजन किया
जाता है, जिससे बच्चो की प्रतिभा भी सामने आती है. आजकल इन
सब चिजों के साथ-साथ समाचार पत्र में विज्ञापन की भरमार भी होती है. चाहे किसी नए
प्रॉडक्ट का लॉंच हो या शादी से सबंधित विज्ञापन हो या जॉब अलर्ट या सरकारी
विज्ञापन आदि सभी समाचार पत्रों की कमाई का प्रमुख स्त्रोत है.
समाचार पत्रों की उपयोगिता-
समाचार पत्र हमारी
रोज की आदत के साथ-साथ हमारे लिए बेहद उपयोगी भी है, इसकी उपयोगिता अलग-अलग क्षेत्रों
में अलग है| आईये हम इसकी कुछ उपयोगिता पर प्रकाश डालते है.
·
आजादी का हथियार बना : जब अंग्रेज़ो का शासन था, तब जनता अंग्रेज़ो की प्रताड़णा से तंग आकर असहाय बनी हुई थी. ना तो कोई
उनकी सुन रहा था, न ही कोई उनके दुखों को कम कर रहा था. ऐसे
में उस समय के अखबारो में क्रांतिकारियों द्वारा दिये गए लेख लोगों में जोश का
साधन बने और उनमें नयी स्फूर्ति भर दी.
·
देश विदेश की जानकारी : कई ऐसे न्यूज़ चेनल है, जिनमें
हर न्यूज़ को प्रसारित किया जाता है, परंतु फिर भी समाचार
पत्रों की अपनी एक अलग पहचान है. रोज समाचार पत्र पढ़ना और उसमें देश विदेश के
समाचार प्राप्त करना, लोगों के जीवन का अहम हिस्सा है.
·
मनोरंजन का साधन : आजकल समाचार पत्रों में न्यूज़ के साथ साथ
मनोरंजन के लिए भी खास चीजे होती है. समाचार पत्रों में हॉलिवुड बॉलीवुड, कहाँनियाँ कई चीजे होती है, जो मनोरंजन के लिए खास
है. आज के समय में कई अच्छे और बड़े अखबार मुख्य अखबार के साथ-साथ छोटी प्रतियाँ
भी देते है, जो मनोरंजन का साधन बनती है.
·
खेल को अलग पहचान देना: हम घर बैठे, किस क्षेत्र
में किसने क्या उपलब्धि हासिल की तुरंत जान लेते है| कोई भी
खेल चाहे वो क्रिकेट हो या टेनिस उससे जुड़ी हर खबर हमें तुरंत हासिल हो जाती है.
यह ख़बरे हमें जानकारी देने के साथ साथ खिलाड़ियो के मन में उत्साह भी भरती है. इन
खबरों से खिलाड़ी तथा खेल दोनों को ही अलग पहचान मिलती है.
·
बच्चों के लिए उपयोगी : समाचार पत्रों ने अपने बाल पाठ्को
पर ध्यान देना भी प्रारंभ कर दिया है| वे उनके लिए अलग
पत्रिकाओ के साथ-साथ कई तरह की प्रतियोगिताये भी आयोजित करते है| जिससे उनके मनोरंजन के साथ साथ उन्हे कई जानकारी भी मिलती है, साथ ही रीडिंग हेबिट्स भी बढ़ती है.
·
विज्ञापन के जरिये चिजों की जानकारी : समाचार
पत्रों मे प्रकाशित विज्ञापन के जरिये हम जॉब, वैवाहिकी जैसी
कई जानकारी प्राप्त कर सकते है. आजकल समाचार पत्रों में कोई भी नयी वस्तु चाहे वो
मोबाइल हो या कार या किचिन से संबंधित कोई चीज उसका विज्ञापन हमे तुरंत देखने
मिलता है और हमें इन चिजों की तथा इनकी कीमत की जानकारी मिलती है.
·
सरकारी योजनाओ की जानकारी : कोई भी सरकारी योजना हो चाहे उसमें कोई
परिवर्तन किए गए हो या उसे नया लॉंच किया गया हो, उसकी
जानकारी हमें तुरंत समाचार पत्रों में उपलब्ध होती है. ताकि हम उसे जानकर उसका
फायदा ले सके.
प्र.
समाचार लेखन का सामान्य परिचय दीजिए |
समाचार के रूप में कैसे दिया जाए? कौन सी
बात पहले रखी जाए और कौनसी बात बाद में। घटनाओं को क्रमबद्ध करने का कौनसा तरीका
अपनाया जाए कि समाचार अपने में पूर्ण और बोलता हुआ सा लगे। हमने पहले से चर्चा की
है कि समाचार लेखन में उल्टा पिरामिड सिद्धांत सबसे प्रभावी होता है।
अच्छे समाचार लेखन की विशेषताएं
एक अच्छे पत्रकार के लिए यह जानना आवश्यक है कि सिर्फ घटनाओं का उसी रूप
में प्रस्तुत कर दिया जाना काफी नहीं होता है आज के समाचार पत्र किसी समाचार की
पृष्ठभूमि को काफी महत्व प्रदान करते हैं क्योंिक समाचारपत्रों द्वारा दी गई
सूचनाओ पर व्यक्ति की निर्भरता में निरंतर वृद्धि हुई है। इसलिए शुद्ध और सटिक
रिपोटिर्ंग की आवश्यकता बढ़ी है। अत: समाचार लिखना भी एक कला है। इस कला में
प्रवीण होने के लिए कई चीजो पर ध्यान देना होता तब जाकर कोई समाचार श्रेष्ठ समाचार
की श्रेणी में आता है। किसी सूचना को सर्वश्रेष्ठ समाचार बनने के गुण कौन, क्या, कब,
कहां, क्यों और कैसे के प्रश्नों में छिपा हुआ
रहता है। पत्रकारिता में इसे छ‘क कार कहा जाता है। यह छह क कार
(क अक्षर से शुरू होनेवाले छ प्रश्न) समाचार की आत्मा है। समाचार में इन तत्वों का
समावेश अनिवार्य है। इन छह सवालों के जवाब में किसी घटना का हर पक्ष सामने आ जाता
है। और समाचार लिखते वक्त इन्हीं प्रश्नो का उत्तर पत्रकार को तलाशना होता है और
पाठकों तक उसे उसके सपूंर्ण अर्थ में पहुचंना होता है। जैसे
1.
क्या- क्या हुआ? जिसके संबंध में समाचार लिखा जा रहा है।
2.
कहां- कहां? ‘समाचार’ में दी गई घटना का
संबंध किस स्थान, नगर, गांव प्रदेश या
देश से है।
3.
कब- ‘समाचार’ किस समय, किस दिन, किस अवसर का है।
4.
कौन- ‘समाचार’ के विषय (घटना,
वृत्तांत आदि) से कौन लोग संबंधित हैं।
5.
क्यो- ‘समाचार’ की पृष्ठभूमि।
6.
कैसे- ‘समाचार’ का पूरा ब्योरा।
उपरोक्त छ क कार के उत्तर
किसी समाचार में पत्रकार सही ढंग से दे दिया तो वह सर्वश्रेष्ठ समाचार की श्रेणी
में आ जाता है।
दूसरी विशेषता है समाचार में तथ्य
के साथ नवीनता हो। साथ ही यह समसामयिक होते हुए उसमें जनरुचि होना चाहिए। समाचार पाठक/दर्शक
/श्रोता के निकट यानी की उससे जुड़ी कोई चीज होनी चाहिए। इसके साथ साथ यह व्यक्ति, समूह एवं समाज तथा देश को
प्रभावित करने में सक्षम होना चाहिए। पाठक वर्ग की समस्या, उसके
सुख दुख से सीधे जुड़ा हुआ हो। समाचार समाचार संगठन की नीति आदर्श का प्रतिनिधित्व
करना चाहिए। सामान्य से हटकर कुछ नया होना चाहिए और व्यक्ति, समाज, समूह एवं देश के लिए कुछ उपयोगी जानकारियां
होनी चाहिए। उपरोक्त कुछ तत्वों में से कुछ या सभी होने से वह
समाचार सर्वश्रेष्ठ की श्रेणी में आता है।
तीसरी विशेषता है समाचारों की भाषा, वाक्य विन्यास और प्रस्तुतीकरण ऐसा हो
कि उन्हें समझने में आम पाठक को कोई असुि वधा या मुश्किल या खीज न हो। क्योंकि
आमतौर पर कोई भी पाठक/दर्शक/श्रोता हाथ में शब्दकोष लेकर समाचार पत्र नहीं पढ़ता
है या देखता है या सुनता है। समाचार सरल भाषा, छोटे वाक्य और
संक्षिप्त पैरागा्रफ में लिखे जाने चाहिए। पत्रकार को अपने पाठक समुदाय के बारे
में पूरी जानकारी होनी चाहिए। दरअसल एक समाचार की भाषा का हर शब्द पाठक के लिए ही
लिखा जा रहा है और समाचार लिखने वाले को पता होना चाहिए कि वह जब किसी शब्द का
इस्तेमाल कर रहा है तो उसका पाठक वर्ग इससे कितना वाकिफ है और कितना नहीं।
चौथी विशेषता है, समाचार
लिखे जाने का उल्टा पिरामिड सिद्धांत को अपनाना चाहिए। इस शैली में समाचार में सबसे
पहले मुखड़ा या इंट्रो या लीड होता है। दूसरे क्रम में समाचार की बाडी होती है
जिसमें घटते हुए क्रम में सूचनाओं का विवरण दिया जाता है। इसका अनुपालन कर समाचार
लिखे जाने से समाचार सर्वश्रेष्ठ समाचार की श्रेणी में गिना जाता है।
प्र . साक्षात्कार लेखन का सामान्य
परिचय दीजिए :-
साक्षात्कार क्या होता है
साक्षात्कार को अंग्रेजी में इंटरव्यू (interview) कहा जाता है।किसी भी क्षेत्र के महत्वपूर्ण
या लोकप्रिय व्यक्ति के समूह उपस्थित होकर अथवा सीधे संवाद द्वारा उनसे किसी
महत्वपूर्ण विषयों अथवा उस व्यक्ति के संबंध में प्रश्नों के माध्यम से जब जानकारी
एकत्र की जाती है तो उसे साक्षात्कार कहते हैं रेडियो के लिए इसे भेटवार्ता कहा
जाता है। पत्रकारिता जगत की या एक महत्वपूर्ण कला है जिसके माध्यम से जिनका
साक्षात्कार दिया जा रहा हो उनसे अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त की जा सकती
है।
साक्षात्कार लेते समय किन बातों का ध्यान रखना
चाहिए
साक्षात्कार लेते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए:
१. साक्षात्कार के पहले विषय एवं व्यक्ति के संबंध में सभी
आवश्यक जानकारी प्राप्त कर लेना चाहिए।
२. साक्षात्कार लेने वाले को स्वयं कम से कम बात कर सामने वाले
को बोलने का पूरा अवसर देना चाहिए।
३. सामान्य विषय पर साक्षात्कार लेते समय व्यक्ति से अत्यंत
व्यक्तिगत बातों से संबंधित प्रश्न नहीं पूछना चाहिए।
४. दिए गए उत्तर में से भी तत्काल प्रश्न पूछने का अभ्यास होना
चाहिए।
५. साक्षात्कार लेते समय सामने वाले की सम्मान को आहत करने
वाली भाषा का उपयोग या उससे संबंधित प्रश्न नहीं किए जाने चाहिए।
६. उत्तर आदि सिटी किया पर्याप्त नहीं हो तो प्रश्न दूसरे
तरीके से पूछना चाहिए।
७. प्रश्न तीखे हो सकते हैं पर अनावश्यक यंग या कटाक्ष से बचना
चाहिए।
८. भाषा और व्यवहार मर्यादित एवं शालीन होना चाहिए।
९. सामने वाला उत्तेजित होकर यदि उग्र व्यवहार करें तब भी
साक्षात्कार देने वाले को शांति और कौशल से अपना काम निकालना जानना चाहिए।
१०. सामने वाले पर ऐसा प्रभाव पड़ना चाहिए कि वाह अगली बार
साक्षात्कार देने को राजी हो सके।
प्र
रेडियो का विकास बताकर उसकी उपयोगिता लिखिए |
अगर दुनिया में रेडियो की शुरुआत की बात करें तो इसकी शुरुआत 1900 के आरंभ से होती है। 24 दिसंबर 1906 को कनाडा के
वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने अपना वॉयलिन बजाया। दूर समुद्र में तैर रहे
जहाजों में रेडियो सेट पर उनके वॉयलिन की आवाज सुनाई दी। इस तरह दुनिया में रेडियो
प्रसारण की शुरुआत हुई। भारत में रेडियो प्रसारण की शुरुआत 1920 के दशक में हुई थी। पहला कार्यक्रम 1923 में मुंबई के रेडियो क्लब द्वारा प्रसारित किया गया। इसके बाद 1927 में मुंबई और कोलकाता में निजी स्वामित्व वाले दो ट्रांसमीटरों से
प्रसारण सेवा की शुरुआत हुई।
ऑल
इंडिया रेडियो भारत की सरकारी रेडियो सेवा है। भारत में रेडियो प्रसारण की शुरूआत 1920 के दशक में हुई। पहला कार्यक्रम 1923 में मुंबई के रेडियो क्लब द्वारा प्रसारित किया गया। इसके बाद 1927 में मुंबई और कोलकाता में निजी स्वामित्व वाले दो ट्रांसमीटरों से
प्रसारण सेवा की स्थापना हुई। सन् 1930 में सरकार ने इन
ट्रांसमीटरों को अपने नियंत्रण में ले लिया और भारतीय प्रसारण सेवा के नाम से उन्हें
परिचालित करना आरंभ कर दिया। 1936 में इसका नाम बदलकर ऑल
इंडिया रेडियो कर दिया और 1957 में आकाशवाणी के नाम से
पुकारा जाने लगा। 1927 तक भारत में भी ढेरों रेडियो क्लबों की स्थापना हो चुकी थी। 1936 में भारत में सरकारी ‘इम्पेरियल रेडियो ऑफ इंडिया’
की शुरुआत हुई जो आज़ादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन
गया।
रेडियो उपयोगिता-
शैक्षिक तकनीकी के इस युग में रेडियों एक प्रभावशाली श्रव्य साधन के रूप
में कक्षा शिक्षण में बहुत उपयोगी है। रेडियों की उपयोगिता के सम्बन्ध में रिनोल्ड
ने अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है, “रेडियो
शिक्षा का एक महत्वपूर्ण साधन है। कक्षा शिक्षण के पूरक के रूप में इसकी
सम्भावनाएँ बहुत बढ़ जाती है। इसकी शिक्षण संभावनाएँ स्कूल दिवस में पाँच या छ:
घन्टे तक ही सीमित नही है। यह प्रातः काल से देर रात तक उपलब्ध रहता है। यह
समुदायों के प्रौढ़ो तथा बालको को संसार के कला और ज्ञान के उत्तम भंडार से परिचित कराता है। किसी दिन
शैक्षिक उपयोग में इसका प्रयोग इतना सामान्य हो जाएगा जितना कि पाठ्य पुस्तके तथा
श्यामपट्ट का है। रेडियों वास्तव में केवल स्कूली बच्चे को ही नही वरन् जन-साधारण
को भी शिक्षित करने का एक उपयोगी साधन है।” रेडियों
पर शैक्षिक पाठों के प्रसारण से दूर-दराज के छात्रों को अत्यधिक लाभ पहुँचा है।
रेडियों पर शिक्षा शास्त्रीयों और अन्य विद्वानो के भाषण प्रसारित किये जाते है
जिसका लाभ सभी विद्यार्थी उठाते है। आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाले पाठो की सूची
बहुत पहले से ही प्रसारित कर दी जाती है। अत: स्कूल के मुख्याध्यापक तथा विषय से
सम्बन्धित अध्यापकों को आकाशवाणी के शैक्षिक कार्यक्रमों का पहले ही ज्ञान होना
चाहिए। रेडियों के शिक्षा के प्रसार में एक और लाभ है कि इससे किसी विशेष भाषण या
किसी कलाकार की रचना को बार-बार सुना जा सकता है। रेडियों द्वारा चुनाव, नागरिक कर्त्तव्य, अधिकार, देश
की समस्याओं का विवेचन आदि से सम्बन्धित कार्यक्रम का सामाजिक अध्ययन के शिक्षण के
लिए बहुत महत्व है।
(i) रेडियों
द्वारा प्रसिद्ध वैज्ञानिको, शिक्षा-शास्त्रियों व कलाकारों
के विचारो, भाषाओं तथा उनकी कलाकृतियों के बारे में सुनने का
अवसर मिल जाता है, जो कि प्रत्येक व्यक्ति या छात्र को
व्यक्तिगत रूप से सम्भव नही।
(ii) रेडियो
प्रसारण कक्षा में शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में अध्यापक को बहुत अधिक
सहायता प्रदान करते हैं।
(iii) दूर-दराज
के क्षेत्रों में जहाँ शैक्षिक सुविधाएँ बहुत सीमित है, रेडियो
प्रसारणों का अधिक महत्व है।
(iv) कम
खर्चीला होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति इससे लाभ उठा सकता है।
(v) रेडियो
प्रसारणो से अध्यापक स्वंय भी ज्ञान प्राप्त करता है। कई नए तथ्यों तथा प्रत्ययो
एंव सिद्धान्तों का ज्ञान अध्यापक को होता है।
(vi) बढ़ती
हुई जनसंख्या के संदर्भ में भी रेडियों का शिक्षण के क्षेत्र में शैक्षिक सुविधाओं
में प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
प्र
टेलीविजन का विकास बताकर उसकी उपयोगिता लिखिए |
टेलीविजन का विकास-
दूरदर्शन
या टेलीविजन का अर्थ है दूर से देखना. यह ऐसा यंत्र है जिससे हम दूर स्थित वस्तुओ कों
देख सकते है. और ध्वनि भी सुन सकते है. इंग्लैंड के वैज्ञानिक जॉन बेयार्ड ने 1926
में सर्वप्रथम दूरदर्शन का उपयोग किया था.
टेलीविजन
यंत्र पर शब्द तरंगो के स्थान पर प्रकाश रश्मियाँ विद्युत तरंगो में बदल जाती है, जो फोटो इलेक्ट्रानिक शीशे पर
पड़कर साक्षात् चित्र बन जाती है.इस काम के लिए कैथोड रे ट्यूब काम में लेते है. दूरदर्शन या टेलीविजन वस्तुतः रेडियों का विकसित रूप है. जिनमे ध्वनि तथा
चित्र दोनों का प्रसारण होता है.
टेलीविजन के शुरुआती दिनों में, यह एक क्रांतिकारी नया आविष्कार
था जिसने लोगों के जीने के तरीके को तेजी से बदल दिया। टेलीविजन का इतिहास 1927
का है जब स्कॉटिश आविष्कारक जॉन लोगी बेयर्ड ने लंदन में पहली
टेलीविजन प्रणाली का प्रदर्शन किया था। इस यांत्रिक प्रणाली में स्कैन की गई
छवियों का उपयोग किया गया था और यह 1884 से पॉल निप्को की
घूर्णन डिस्क तकनीक पर आधारित थी।
इस प्रारंभिक सफलता के बाद, कई अन्वेषकों ने बेयर्ड के डिजाइन
में सुधार करना शुरू किया, अंततः 1934 में
टेलीविजन का एक इलेक्ट्रॉनिक संस्करण पेश किया। यह नई तकनीक तेज छवियों का उत्पादन
कर सकती है। , प्रसारण में अधिक वृद्धि और विकास की अनुमति देता
है। 1937 तक, बीबीसी ने नियमित प्रसारण
शुरू किया था जिसमें प्रोग्रामिंग जैसे समाचार बुलेटिन और खेल कवरेज शामिल थे। उसके बाद के वर्षों में रंगीन डिस्प्ले और बेहतर तस्वीर की गुणवत्ता की
शुरुआत के साथ टीवी प्रौद्योगिकी में तेजी से विस्तार हुआ।
टेलीविजन का उपयोगिता-
टेलीविजन
जनसंचार का सरल व सस्ता माध्यम है। टेलिविजन संचार के माध्यम में क्रांति साबित
हुआ है। आज वर्तमान में टेलीविजन सबसे लोकप्रिय व ताकतवर माध्यम माना जाता है। जिसके कारण एक व्यक्ति कहीं
दूर बैठे देश-विदेश में घटने वाली घटना को आंखों देखा, देख
सकता है। किसी भी खेल का प्रसारण वह अपने टेलीविजन पर तत्काल व सजीव रूप (live)
में देख सकता है। इसकी उपयोगिता वर्तमान समय में निम्न प्रकार की है
–
किसी घटना की तुरंत जानकारी – टेलिविजन
के माध्यम से एक दर्शक कहीं भी घटने वाली घटना को तुरंत व सजीव रूप में देख सकता
है। टेलीविजन ने आज सामान्य से सामान्य लोगों तक अपनी पहुंच बना ली है।
विश्वसनीयता – टेलीविजन के आगमन से दर्शक के बीच विश्वसनीयता का भाव उत्पन्न हुआ
है। पत्र – पत्रिका
आदि के माध्यम से पाठक व दर्शक के पास जो घटना पहुंचती है। वह किसी दूसरे व्यक्ति
के माध्यम से आती है। किंतु टेलिविजन साक्षात रूप में उस घटना का विवरण दिखाता है,
जिसके कारण दर्शकों में विश्वसनीयता का भाव जागृत होता है, जो जनसंचार का सबसे सफलतम उदाहरण हो सकता है।
टेलीविजन का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग – वर्तमान समय में सरकारी व
अर्ध सरकारी अथवा पूर्ण रूप से निजी रूप में टेलीविजन पर कई ऐसे चैनल प्रचलित हैं ,
जो शिक्षा व ज्ञान-विज्ञान की जानकारियां संप्रेषित करती है। एक
व्यक्ति अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए, व एक छात्र उस चैनल से
जुड़कर अपने विषय से जुड़ी जानकारियां प्राप्त कर सकता है।
निष्कर्ष-
टेलीविज़न आज के संचार को औरअधिक सजीव
दिखाने का सबसे सस्ता और सरल माध्यम हे। इस माध्यम की पंहुच वर्ग के लोगो तक है, जिसके माध्यम से हर वर्ग का ज्ञान, मनोरंजन, शिक्षा के साथ नाता जुड़ जाता है। आधुनिक समय में मोबाइल तथा कंप्यूटर का
बोलबाला है किन्तु टेलीविज़न हर परिस्थिति में कारगर है। इस माध्यम में इंटरनेट के
बाध्यता नहीं होती।
आशा हे उपरोक्त लेख आपके लिए कारगर होगा
इस लेख से आपको कुछ जानकारी मिली होगी। अपने सुझाव और विचार हमे अवश्य लिखे ताकि
हम आपके विचारो के अनुसार लेख में सुधार करते रहे।
प्र . विज्ञापन लेखन
-
१.
कार
ड्राइविंग सिखाने वाले नए स्कूल के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
प्र निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक - एक वाक्य में
लिखिए |
१. संचार
अंग्रेजी के किस शब्द का पर्याय है |
- कम्यूनिकेशन
२. भारत
कि पहली बोलती फिल्म कौन सी है |
- आलम
आरा
३. रेडियो
जनसंचार का किस प्रकार का माध्यम है |
- श्राव्य
माध्यम
४. भारत
में पहला टेलीविजन केंद्र कहाँ स्थापित हुआ |
- दिल्ली
५. ‘हवा
महल’ कार्यक्रम का संबंध किस संचार माध्यम से है |
- रेडियो
६. किस
देश में सबसे पहले खोजी पत्रकारीता को मान्यता मिली |
- अमरीका
७. समाचार पत्र की आय बढ़ाने में किस विभाग की
भूमिका सर्वाधिक महत्व पूर्ण होती है |
- विज्ञापन विभाग
८. दो
प्रभावशाली सोशल मीडिया के नाम लिखिए |
- फेसबुक,
ट्विटर
९. इंडियन
जर्नलिस्ट एसोसिएशन की स्थापना किस वर्ष हुई |
- सन – १९२२
१०.
काठपुतली किस प्रकार का माध्यम है
|
- परंपरागत
जनसंचार माध्यम